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उद्देश्यः-
निगम के गठन का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ी जाति ,अल्प संख्यक, सफाई कर्मचारियों, स्वच्छकारों तथा विकलांगों के गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों के आर्थिक उत्थान हेतु राष्ट्रीय निगमों से सस्ती दर पर ऋण प्राप्त करना ,स्वयं के अंशपूंजी से अंशपंूजी ऋण उपलब्ध कराना तथा बैंकों के माध्यम से स्वरोजगार हेतु ऋण सुविधा प्रदान करना है। इसके अतिरिक्त अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिये भारत सरकार से विशेष केन्द्रीय सहायता मद से स्पेशल कम्पोनेन्ट प्लान एवं ट्राइवल सब-प्लान के अन्तर्गत प्राप्त धनराशि से स्वतः रोजगार हेतु अनुदान एवं कौशल वृद्धि के लिये प्रशिक्षण की योजनाओं का संचालन करना है।
उत्तराखण्ड की कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार कुल 1,00,86,292 है जिसमें 6,68,568 बी0पी0एल0 परिवार है। अनुसूचित जाति की कुल जनसंख्या 18,92,516 है जिसमें से 1,69,935 परिवार बी.पी.एल. की श्रेणी में है अनुसूचित जनजाति की कुल जनसंख्या 2,91,903 है जिसमें से 24,856 परिवार बी.पी.एल. की श्रेणी में है ।
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए संचालित योजनाओं का विवरण ।
गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले अनुसूचित जाति के परिवारों को कृषि ,सेवा, व्यवसाय, यातायात हेतु रू20000- से रू07 लाख तक की परियोजना लागत तक ऋण विभिन्न बैंकों के माध्यम से स्वीकृत किया जाता है। योजना के अन्तर्गत 50 प्रतिशत या अधिकतम रू10.000 का शासकीय अनुदान एवं योजना की लागत का 25 प्रतिशत मार्जिनमनी ऋण 4 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर निगम द्वारा लाभार्थी को बैंकों के माध्यम से उपलब्ध कराया जाता है।
कृषि उपकरण, आॅटोमोबाइल वर्कशाप , बैण्डपार्टी , आर्केस्ट्रा ,ब्यूटी पार्लर, साइकिल मरम्मत , बायोगैस प्लान्ट,नाई की दुकान , बुकबाइन्डिंग , ईंट बनाना , बैलगाड़ी, केबिल टी0वी0 ,मोमबत्ती बनाना , ग्रीटिंग कार्ड बनाना ,कालीन उद्योग, कपड़ा व्यवसाय ,तांम्र उद्योग, डिपार्टमेन्टल स्टोर , ढाबा व रेस्टोरेन्ट ,ड्राइविंग स्कूल ,फलफुल उत्पादन ,आटा चावल चक्की ,बकरीपालन , ब्रेकरी ,पनसारी की दुकान , हाॅजरी , बांस का फर्नीचर बनाना ,लकड़ी का फर्नीचर बनाना ,चमड़े का सामाना बनाना ,जूते बनाना, सीमेन्ट के ब्लाक बनाना, मधुमक्खीपालन, नर्सिगं होम, मुर्गीपालन, प्रिन्टिंग प्रैस , कुम्हार का काम ,मिठाई की दुकान, सिलाई की दुकान , टायर सर्विसिंग ,लेमिनेशन , पीसीओ /एसटीडी,टेन्ट हाउस ,यातायात आॅटो टैक्सी ,मार्बल पाॅलिस ,विद्युत वस्तु की विक्री एवं रिपेयरिंग, फास्ट फूड की दुकान आदि।
शहरी क्षेत्र दुकान निर्माण योजना
शहरी क्षेत्र ,अर्द्ध शहरी क्षेत्र, व्यवसायिक स्थल पर यदि गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लक्षित अनुसूचित जाति के लाभार्थियों की स्वयं की निजी भूमि उपलब्ध हो तो निगम द्वारा विशेष केन्द्रीय सहायता द्वारा प्राप्त धनराशि से लाभार्थी के लिये दुकान निर्माण योजना के अन्तर्गत मैदानी क्षेत्रों हेतु रू78000- तथा पर्वतीय क्षेत्रों हेतु रू85000 की धनराशि उपलब्ध कराई जाती है जिसमें रू0 10000 शासकीय अनुदान के रूप में एवं अवष्ेाष ब्याजमुक्त ऋण के रूप में होता है जिसकी वसूली 120 समान मासिक किस्तों में की जाती है। दुकान का निर्धारित साइज 10X8 का होगा एवं इसके साथ 4 फिट का बरामदा भी होगा।
दुकान निर्माण का कार्य पूर्ण कराने के बाद लाभार्थी को उसकी अभिरूचि एवं स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार व्यवसाय चलाने हेतु स्वतः रोजगार योजना के अन्तर्गत ऋण की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है जिसमें लाभार्थी को रू0 20000- से रू0 7.00 लाख तक की ऋण सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती है जिसके सापेक्ष रू010000- अनुदान एवं 25 प्रतिशत मार्जिनमनी ऋण की धनराशि भी अनुमन्य है। शेष धनराशि बैंक ऋण के रूप में दी जाती है। दुकान निर्माण हेतु आवेदन देने की प्रक्रिया एवं पात्रताएं वही हैं जो स्वतः रोजगार योजना के अन्तर्गत निर्धारित हैं।
जीविका अवसर प्रोत्साहन योजना(अनुसूचित जाति एवं जनजाति)
अनुसूचित जाति एवं जनजाति हेतु जीविका अवसर प्रोत्साहन योजना का क्रियान्वयन राज्य सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2004.05 से किया गया हैं । समाज कल्याण विभाग द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के व्यक्तिगत एवं सामूहिक रोजगार के अवसर विकसित करने हेतु इस योजना का शुभारम्भ किया गया है। उत्तराखण्ड बहुउद्देशीय वित्त एवं विकास निगम केन्द्र एवं राज्य सरकार का उपक्रम है। जनपद स्तर पर जिला समाज कल्याण अधिकारी निगम के जिला प्रबन्धक हैं जब कि मुख्यालय स्तर पर निगम के क्रियाक्लाप प्रबन्ध निदेशक द्वारा एक महा प्रबन्धक एवं दो उप महा प्रबन्धकों के सहयोग से सम्पादित किये जाते हैं।
अनुसूचित जाति एवं जनजाति हेतु जीविका अवसर प्रोत्साहन योजना के निम्नलिखित घटक होंगेः-
1- सूचना संकलन ,अनुश्रवण एवं मूल्यंाकन
2- ऋण अनुदान एवं अन्य सुविधाएं
3- क्षमता विकास एवं कौषल वृद्धि हेतु प्रषिक्षण
1. आवेदनकर्ता उत्तराखण्ड का निवासी होना चाहिये।
2. आयु 18 वर्ष से 50 वर्ष के मध्य होनी चाहिये।
3. मासिक आय षहरी क्षेत्र में रू 55000 वार्षिक तथा ग्रामीण क्षेत्र में रू 40000 से अधिक नहीं होनी चाहिये। ग्रामीण क्षेत्र के बी0पी0एल0 परिवारों हेतु प्रमाणपत्र खण्ड विकास अधिकारी द्वारा प्रदत्त किया जायेगा।
4. अनुसूचित जाति एवं जनजाति की पुष्टि हेतु सक्षम अधिकारी द्वारा प्रदत्त अनुसूचित जाति एवं जनजाति प्रमाण पत्र।
रू0 1.00 लाख तक की योजनाओं में- कुछ नहीं
रू1.00 से रू2.00 लाख तक की योजनाओं में- 10 प्रतिषत
शिल्पी ग्राम(अनुसूचित जाति एवं जनजाति)
उत्तराखण्ड में निवास करने वाले अनुसूचित जाति ,जनजाति समुदाय का मुख्य साधन परम्परागत हस्त शिल्प रहा है। उत्तराखण्ड की जनसंख्या में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 17.50 प्रतिशत तथा जनजाति की जनसंख्या 3 प्रतिशत है। इन समुदायों में हस्त शिल्प पारम्परिक रूप से विकसित होता रहा और पीढ़ी दर पीढ़ी हस्त शिल्प कौशल हस्तान्तरित होता रहा है। आधुनिक बाजार ,आर्थिकी तथा शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ राजकीय सेवाओं में भागीदारी तथा आवश्यक अवस्थापना सुविधाओं के अभाव में हस्त शिल्प में संलग्न परिवार तथा उत्पाादित सामग्री की गुणवत्ता में हा्रस की स्थिति उत्पन्न हुई है। नवोदित राज्य उत्तराखण्ड में लुप्त हो रहे पारम्परिक शिल्पों को पुर्नजीवित करने तथा प्रोत्साहित करने हेतु उत्तराखण्ड शासन द्वारा शिल्पी ग्राम की एक महत्वाकांक्षी योजना आरम्भ की गई है। इससे एक तरफ पारम्परिक कौशल समाप्त होने से बचेगा वहीं उन शिल्पों में कार्यरत शिल्पी अपने कौशल के आधार पर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकेंगे। उल्लेखनीय है कि हस्त शिल्प में मुख्यतः अनुसूचित जाति एवं जनजाति के परिवार ही संलग्न हैं।
शिल्पी ग्राम योजना अन्तर्गत शिल्प ग्रामों का सर्वेक्षण शिल्पियों का चिन्हांकन ,कुशल शिल्पी से अर्द्धकुशल तथा अकुशल शिल्पियों का प्रशिक्षण एवं शिल्पी ग्रामों में अवस्थापना विकास ,विपणन की व्यवस्था आदि समाहित की गई है।
सर्वप्रथम परम्परागत शिल्पों की पहचान जिनमें संलग्न शिल्पियों का चिन्हांकन करना तथा उनकी दक्षता के अनुसार कुशल एवं अकुशल की श्रेणी में वर्गीकरण करना एवं पंजीकरण करना।
इस योजना के अन्तर्गत राज्य के सभी चयनित विकासखण्ड आच्छादित होंगे। इसके लिये एक सुनियोजित एवं त्रुटिरहित सर्वेक्षण कराया जायेगा जिसे समय-समय पर अद्यावधिक किया जायेगा। इसके अतिरिक्त योजना क्रियान्वयन के अध्ययन मूल्यांकन एवं अनुश्रवण की कार्यवाही भी किया जाना आवश्यक है। क्याsकि इससे योजना की सफलता प्रगति एवं क्रियान्वयन में आने वाली कठिनाईयों की जानकारी प्राप्त की जा सकेगी। सर्वेक्षण अध्ययन एवं सत्त अनुश्रवण हेतु परामर्शदाताओं की नियुक्ति विशेषज्ञ सेवाओं को प्राप्त करने शिल्प ग्रामों ,शिल्पियों एवं शिल्प परिवारों के विषय में आधारभूत डाटा एवं सूचनाएं तैयार करने तथा शिल्पियों के पहचान पत्र बनाने की भी कार्यवाही की जायेगी। योजना के अन्तर्गत प्रशिक्षण तीन स्तर पर दिया जायेगा। पहले जागरूकता सृजन एवं अभिमुखीकरण तत्पश्चात प्रारम्भिक प्रशिक्षण एवं व्यवसायिक प्रशिक्षण व्यवसायिक प्रशिक्षण पूर्ण होने के उपरान्त शिल्पियों द्वारा उत्पाादित वस्तुओं की गुणवत्ता की समीक्षा की जायेगी कि क्या प्रशिक्षार्थियों द्वारा उत्पाादित वस्तु बाजार में प्रतिस्पर्धा में टिकेगी अथवा नहीं। यदि गुणवत्ता में कमी होगी तो विशेष प्राविधान के तहत प्रशिक्षण को अधिकतम तीन माह तक और बढ़ाया जायेगा।
उत्पादित वस्तुओं के विपणन हेतु वस्तु की कीमत बाजार की स्थितियों एवं लागत के अनुसार तय की जायेगी। उत्पादित वस्तुओं का प्रचार-प्रसार किया जायेगा। वस्तुओं के विपणन हेतु सम्भावित बाजार तथा वस्तुओं की मांग का सर्वेक्षण कराया जायेगा । शिल्पियों से विभिन्न प्रकार के नमूने प्राप्त कर उन्हें यात्रा मार्ग में पर्यटन विभाग द्वारा निर्मित केन्द्रों में प्रदर्शित किया जायेगा एवं प्रतिष्ठित आगन्तुकों को उपहार स्वरूप दिया जायेगा ताकि पर्यटकों में विक्री को बढ़ावा मिल सके एवं शिल्पी ग्राम योजना पर्यटन के साथ जुड़ सके। केन्द्रीय स्थलों पर स्थाई हाट निर्माण किया जायेगा तथा अस्थाई टैन्ट के रूप में सार्वजनिक स्थान पर भी सुविधा दी जायेगी और ऐसे स्थाई भवनों के लिए शिल्पियों से आवेदन पत्र प्राप्त किये जायेंगे अथवा शिल्पियों से ही निविदाएं आमंत्रित की जायेंगी। शिल्प उत्पादों के उत्तराखण्ड ब्राण्ड का मानकीकरण किया जायेगा। जैसेः उत्तराखण्ड ऊनी कार्पेट आदि।
तकनीकी एवं सहायक सुविधाएंः- इसके अन्तर्गत शिल्पियों को परामर्श एवं भ्रमण कराया जायेगा जिसके तहत अन्य पर्वतीय राज्यों यथाः हिमांचल प्रदेश ,जम्मू कश्मीर ,मणिपुर अथवा ऐसे राज्यों में भ्रमण कराया जायेगा जहां हस्त शिल्प के क्षेत्र में अच्छा विकास हुआ हो और अनुसूचित जाति के शिल्पी बहुलता में हो। शिल्पियों में प्रतिस्पद्र्धा की भावना जगाने के लिये उत्कृष्ठ शिल्पियों को पुरूष्कार आदि की व्यवस्था भी की जायेगी। इसके अतिरिक्त शिल्प विकास गतिविधि आदि के संचालन राष्ट्रीय ,अन्तर्राष्ट्रीय मेलों , गोष्ठियों में इन उत्पादकों की भागीदारी सुनिष्चिितश्चत कराने हेतु आने-जाने व ठहरने की व्यवस्था निःशुल्क कराई जायेगी। इस प्रकार यातायात ,परामर्श ,भ्रमण,उत्कृष्ठता पुरूष्कार की व्यवस्था भी प्रस्तावित की जायेगी।
व्यवसाय विकास हेतु अवस्थापना विकास एक आवश्यक शर्त है जिसमें मुख्यतः संचार सुविधा ,बिजली ,पानी ,सड़क ,कच्चे माल एवं बाजार की सुविधा ,सामूहिक सुविधाएं, विपणन की गतिविधियों का संगठन एवं उत्पाकता वृद्धि सम्मिलित है। प्रथम चरण में दो केन्द्रीयकृत शिल्प ग्राम इम्पोरियम उपयुक्त स्थान पर खोला जाना भी प्रस्तावित है जिसके लिये रू 50 लाख प्रति केन्द्र की व्यवस्था की जायेगी।
योजना के सफल एवं प्रभावी क्रियान्वयन के निमित्त सत्त अनुश्रवण एवं समीक्षा हेतु एक राज्य स्तरीय समीक्षा समिति का गठन प्रमुख सचिव/ सचिव , समाज कल्याण ,उत्तराखण्ड शासन की अध्यक्षता में गठित किया गया है जिसके सदस्य मुख्य अधिशासी अधिकारी , बम्बू बोर्ड , मुख्य अधिशासी अधिकारी , लाइव स्टाक डेवलपमेन्ट बोर्ड ,मुख्य अधिशासी अधिकारी ,शीप एण्ड वूल बोर्ड ,समन्वयक ,उत्तराखण्ड आॅर्गनिक बोर्ड ,प्रबन्ध निदेशक,उत्तराखण्ड बन निगम ,निदेशक, उद्योग ,महा प्रबन्धक, उत्तराखण्ड बहुउद्देशीय वित्त एवं विकास निगम हैं।
स्वच्छकारों एवं उनके आश्रितों की विमुक्ति एवं पुर्नवास की योजना
स्वच्छकारों एवं उनके आश्रितों की विमुक्ति एवं पुर्नवास की योजना भारत सरकार द्वारा 22 मार्च 1992 को प्रारम्भ की गई। जिसे वर्ष 2007 से मैनुअवल स्केवैन्जरो के पुर्नवास की स्वरोजगार योजना (ैत्डै) के रूप में संचालित की जा रही है। इस योजना के अन्तर्गत वह स्वच्छकार जो अपनी रोजी के लिये सर पर मैला ढोने जैसे अमानवीय एवं घृणित पैत्रिक धन्धे में लगे हैं , को इस घृणित पृथा से मुक्त कराकर सम्मानजनक वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध कराया जाता है। नव गठित उत्तराखण्ड राज्य के गठन के उपरान्त उत्तराखण्ड राज्य में भी ऐसे स्वच्छकारों को चिन्हांकित किया गया जो अभी भी इस कुप्रथा के शिकार हैं। ऐसे स्वच्छकारों की संख्या उत्तराखण्ड में 1972 चिन्हांकित किए गए जिसके सापेक्ष 1850 स्वचछकारों को प्रषिक्षण उपलब्ध कराया गया है तथा 929 स्वच्छकारों को पुनर्वासित करते हुए वैकल्पिक रोजगार प्रदान किया गया। अवषेष 1043 स्वच्छकार ऐसे पाये गये जो विभिन्न कारणों के पात्रता की श्रेणी में न आने के कारण पुनर्वासित नही किया जा सका ।
वर्तमान में भारत सरकार से जारी नये दिषा-निर्देषों के अनुसार वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर इस राज्य में पाये गये 49 नगरीय क्षेत्रों में चिन्हित 5503 भवनों में उपलब्ध शुष्क शौचालयों में संलिप्त स्वच्छकारों के पुनर्वेक्षण का कार्य सम्पन्न किया गया। पुर्नसर्वेक्षणोपरान्त प्रदेष में कुल 131 स्वच्छकार परिवार शुष्क शौचालयों में कार्यरत पाये गये है। सवंेक्षित परिवारों की संकलित सूची भारत सरकार को प्रेषित की जा चुकी है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम द्वारा संचालित योजनाएं
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम (अनुविनि) कम्पनी अधिनियम 1956 के धारा 25 के अधीन स्थापित कम्पनी है। निगम सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार का पूर्णतः निजी उपक्रम है जिसकी दिनांक 31मार्च 2001 को अधिकृत पूंजी रूपया 1000 करोड़ है और प्रदत्त पूंजी रूपया 411 करोड़ है । निगम का प्रबन्धन केन्द्र सरकार ,राज्य स्तरीय चैनेलाइजिंग अभिकरणों ,वित्तीय संस्थानों व अनुसूचित जाति के व्यक्तियों के हित में अपनी सेवा प्रदान करने में प्रसिद्ध प्रमुख व्यक्तियों के प्रतिनिधित्व में गठित निदेशक मण्डल द्वारा किया जाता है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम द्वारा राज्य में अनुसूचित जाति के लिये निगम से संचालित योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु उत्तराखण्ड बहुउद्देशीय वित्त एवं विकास निगम को शासन द्वारा राज्य चैनेलाइजिंग अभिकरण नामित किया गया है। इस हेतु राष्ट्रीय निगम से ऋण लेने के लिए राज्य सरकार द्वारा बहुउद्देशीय निगम के पक्ष में राष्ट्रीय निगम को रू 5 करोड़ की स्टेट गारन्टी भी उपलब्ध कराई गई है।
Ministry of Social Justice and Empowerment
Ministry of Tribal Affairs
Ministry of Women & Child Development
Eklavya Adarsh Awasiya Vidhyalaya, Dehradun